Saturday, September 1, 2018



बुंदेलखंड मालवा की भुंजरिया (कजलियों)


राखी के एक दिन बाद आती है बुंदेलखंड मालवा की भुंजरिया (कजलियों)........
बड़े ही लाड प्यार से इनको बड़ा करते है, बचपन में अम्माँ, नागपंचमी के बाद ही घर की सबसे अच्छी वाली चूल्हे की राख तैयार करती और गेंहूं को एक रात पानी में भिगोने के बाद, खबासन बाई के दिए हुए बड़े बड़े दोना (बड़ा कटोरा पत्ते का बना हुआ पात्र) में घर के तीन चार जगह बोया जाता है एक पूजा के मंदिर के पास, दूसरा तुलसी के पास छोटा खेत बना कर पूरे समय इन पांच दोना को बोइया (बाँस की बड़ी टोकरी) से ढक कर रखना होता है ताकी सीधी हवा ना लगे और सीधे प्रकाश की किरणे भी ना पड़े इस तरह इनका पीला पन बरक़रार रहता है रक्षाबंधन की पूर्णिमा के समय तक रोज़ पूजा करते समय थोड़े थोड़े जल की बूँदें छिटक देते है ताकि नमी भी बनी रहे और अधिक जल की मात्रा भी ना हो। हम जब छोटे थे तो रोज़ बड़ी उत्सुकता रहती थी देखने की, कि कितने बड़े गेंहूं हुए मतलब "हमरी भुंजरियें कित्ती बड़ी हो गयी" क्योंकि उनके बड़े होने पर ही रक्षाबंधन आएगा और हम झूला झुलाएंगे।
रोज़ कभी गलती से ज्यादा पानी गया तो अम्माँ की डाँट सुननी पड़ती थी क्योंकि जिसकी भुंजरिएँ सबसे बड़ी घनी और पीरी मतलब भोत अच्छों शुभ संकेत।
खैर, राखी वाले दिन सारे दोना की पूजा पहले राखी कजलियों को बंधेगी, फिर भगवान् जी को फिर आँगन में तुलसी को फिर सबरे दई-देवता को उसके बाद भाई को। कितनी चहल पहल वाला माहौल गाँव में घुटने घुटने कीचड़, हाँथ में राखी-बतेसा की थारी और नई-नई साड़ी पहने बहनें कोसों दूर से भाई के घर आती है पूरे गाँव में राखी वहीं कीचड की खच खच और घर के खपड़ा से आता हुआ बारिश पानी बहार उलाइची की बाल्टी भर जाती। सब उसमें पाँव धो कर फट्टा पे पोछ कर फिर झट्टी से भाई को राखी बांधो, गुझा खाओ और विदाई लो और ख़ुशी ख़ुशी घर जाओ 
दूसरा दिन सुबह से शुरू हुआ जल्दी जल्दी नहा धो के नए कपडे पहने और दोपहर में भूंजारिओं की पूजा के लिए झूला तैयार है। २-३ बजते ही हलचल शुरू हो जाती है और सामूहिक गाँव के साथ सभी के घर से १-२ दोना नदी और मंदिर के लिए निकलते है कुछ मंदिर पर रखते है और कुछ नदी में विसर्जित कर देते है मंदिर वाले दोना से कोई भी तोड़ सकता है भगवान् को चढाने के बाद। गाँव के कुछ घरों में गमी के कारण बस भुंजरियें नहीं बोई तो यही भुंजरियें काम आती है ! हम बच्चे लोगों को सबसे ज्यादा उत्सुकता रहती थी सबसे ज्यादा नन्ही मुट्ठी जितनी भुंजरिऐं आये कस के मुठ्ठी बांधे रखो। गाँव में जो लोग शहर चले गए नौकरी/पढाई करने वो भी राखी में घर आते है उस दिन सब घरों से निकलते है और एक-एक करके सबको कजलियों का आदान प्रदान करते हुए गले मिलते पाँव लागी करके बड़ों से आशीर्वाद लेते हुए सबसे मिलते है सबके जेब में चिल्लर जरूर होती है क्योंकि बच्चे सामने आ गए तो दोनों तरफ कान के भुंजरियें लगते हुए एक दो रुपये के सिक्के भी मिलते थे वही सबसे बड़ा उत्साह था घर घर जाकर सबसे आशीर्वाद लो और चिल्लर भी। यकीन मानिये, दुनियाँ की सबसे बड़ी दौलत वही लगती थी छन छन करते सिक्के पूरे गाँव में घूमते थे, बड़ा मज़ा आता था और ये लेन - देन कृष्ण जन्माष्टमी तक चलता है तब तक भुंजरियों को सम्हाल के रखो और धीरे धीरे खर्चा करो। इन आठ दिनों में दूर दराज के गाँवों और रिश्तेदारों के यहाँ भी वितरण करो और राखी बांधो।
अब समय बदल गया वो कीचड वाली राखी और पीरी भुंजरियों बस व्हाट्सप्प और फेसबुक में कहीं कहीं दिखाई दे रहे है और ये प्राचीन प्रथा भी विलुप्त होती जा रही है।
(बचपन की स्मृति के कुछ अंश)
माया विश्वकर्मा २७/०८/२०१८
Maya Vishwakarma - माया विश्वकर्मा



Tuesday, August 22, 2017

यूनाइटेड नेशन अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर सेमिनार का आयोजन.



यूनाइटेड नेशन अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर सेमिनार का आयोजन.

साईंखेड़ा अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन सुकर्मा फाउंडेशन एवं स्वामी विद्यानंद आइडियल पब्लिक स्कूल के संयुक्त तत्वाधान में एस बी आई पी स्कूल साईं खेड़ा में आज दोपहर 2:00 बजे किया गया । इस कार्यक्रम के माध्यम से संस्था के छात्र-छात्राओं को लाइव वीडियो कांफ्रेंसिंग से फ्रेमोंट सन फ्रांसिस्को कैलिफ़ोर्निया अमेरिका (USA) से माया विश्वकर्मा ने छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए यू एन के बारे में जानकारी एवं वर्तमान परिवेश में उसके कार्यों व महत्व, युवाओं की उपयोगिता और महत्वता तथा युवाओं को समाज का आधार स्तंभ बताया । उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारतीय समय अनुसार 2:00 बजे से 3:00 बजे के बीच अपने संबोधन में विश्व स्तर पर युवाओं की भूमिका युवाओं के महत्व एवं युवाओं को विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्ति से संबंधित समस्याएं और निराकरण तथा अनेक अनेक सुझाव प्रदान किए । इस अवसर पर संस्था के छात्र-छात्राओं द्वारा अमेरिका में बैठे विशेषज्ञों से बात कर बहुत अच्छा अनुभव किया। इस बीच बच्चों को ईरान से आयी मेहमान सारा सोहैली से भी बात चित करने का मौका मिला। जिज्ञासा वस छात्र छात्राओं ने विविध प्रश्न किए और उनके जवाब जी विशेषज्ञ माया विश्वकर्मा द्वारा प्रदान किए गए। इस अवसर पर संस्था के छात्र छात्राओं तथा शिक्षक शिक्षिकाओं के अतिरिक्त डीके चतुर्वेदी अरविंद राजपूत भानु प्रताप राजपूत एवं अनिल गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे ! 


           SVIP स्कूल के बच्चे NRI माया विश्वकर्मा से गूगल माध्यम से संपर्क में है अपने प्रश्नों के जबाब पूछते हुए।     








Tuesday, July 18, 2017



स्वच्छ भारत अभियान 


ये किस्सा हालफिलहाल भारत भ्रमण का है, दिल्ली से राजस्थान जाना था ट्रैन से लेकिन दो मिनिट से चूक गयी इलेक्ट्रिक ऑटो के चक्कर में फिर क्या सीधा टेसन से ओला बुक किया और बस स्टैंड, ओला वाले ड्राइवर को पूछा "भैया, जरा पता करो सबसे पहले राजस्थान रोडवेज की बस कितने बजे निकलेगी?" वो तो साढ़े आठ बजे जाएगी आप तब तक यही रहेंगी ? हाँ भैया, सुबह सुबह इतने दिल्ली के ट्रैफिक में कहाँ जाएँ ? अच्छा चलिए तब तक चाय पीते है थोड़ा आधा घंटा निकल जायेगा। भैया ने तुरंत हाँ किया थोड़ा इधर उधर की बातें की और मेरा बस में सामान रख दिया। दिल्ली से झुंझुनू का बस में लम्बा सफर आसान नहीं था मगर वो कहावत है की जब सिर दिया हो ओखली में तो मूसल से क्या डरना। सफर बहुत मजेदार था रोड बाहर के खेत खलिहान देखते देखते चार घंटे कब निकल गए पता नहीं चला बस रुकने का इंतज़ार हो रहा था सब अच्छे अच्छे ढाबे और रेस्टॉरेंट निकल गए कही बस नहीं रुकी और अचानक एक खच्चड़ से ढाबे के पास बस रुकी। सभी लोग तुरंत चाय पानी के लिए उतरे, महिलायें भी बाथरूम के लिए उतरी और आस पास शौचालय देखने लगी अब चूकि दूकान और टूटा शौचालय सटे हुए थे तो शर्मा के थोड़ा दूर चल दी पर वहां भी कोई महिलाओं का शौचालय नहीं था अंत में सामने खेत थे खुले हुए अधिकतर महिलाएं गाँव से थी तुरंत खेत की मेड में ओट देखी और निस्तार किया। मैने एक दो चक्कर काटे आस पास के कही भी जगह नहीं दिखाई दी तो ड्राइवर से पूछा की कैसी जगह खाड़ी की है बस जगह भी नहीं है बाथरूम जाने की। यहाँ कहाँ रोकी है इतने अच्छे अच्छे रेस्टॉरेंट निकल गए वहां कियों नहीं रोकी ? ड्राइवर ने कहाँ मैडम ये सरकारी बस है, प्राइवेट वाले रोकने नहीं देते इसलिए इसी जगह नक्की की है। जो है यही है। 


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बड़ी दिक्कत है कहाँ जाया जाए इतने लोग आस पास शौचालय का गेट भी टूटा जंग खा गया किबाड़ पूरा और देखने से लगा की जब से बना है सफाई नहीं हुई, अंत में उसी में जाना पड़ा  जैसे ही मेने बस की तरफ मुड़ी मेरी नज़र बस में लगे विज्ञापन पर पड़ी जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था " खुले में शौच ना करें, शौचालय का उपयोग करें" अब ये सरकारी बस सरकारी विज्ञापन और स्वच्छ भारत अभियान की ऐसी तैसी कौन कर रहा है ? जहाँ रोज़ हज़ार लोग आते होंगे और हज़ारों के लेन देन भी होता होगा। मगर "महिला शौचालय" साफ़ सुथरा बनाने में क्या दिक्कत है? ये बस ऐसी ही चलती रहेगी महिलायें खेतो में चली जाएँगी दूकान में पेप्सी कोको कोला आ जायेगा, लाल नीले बड़े बड़े होर्डिंग विज्ञापन के हर जगह लग जायेंगे, और हम इन्ही चीज़ों के आदि हो जायेंगे।

Tuesday, January 24, 2017



पैसा और जूनून की लड़ाई:  पंजाब और गोवा चुनाव में NRIs का आगाज । 

पंजाब और गोवा में चुनावी बिगुल बज चुका है चारों तरफ जोर शोर से तैयारी चल रही है। वैसे तो चुनाव देश के अन्य राज्यों में भी है मगर पंजाब और गोवा चुनावों में लोगों की दिलचस्पी अधिक देखने को मिल रही है क्योंकि यहाँ पहली बार असेंबली चुनावों में आम आदमी पार्टी हिस्सा ले रही है। २०१४ के लोकसभा चुनाव मोदी लहर में आम आदमी पार्टी  के चार एम् पी ने संसद में अपनी सीट पक्की की तब से आम आदमी पार्टी का ग्राफ पंजाब में लगातार ऊपर गया उसके बाद २०१५ दिल्ली विधान सभा चुनाव में 67 सीट आने के बाद आम आदमी पार्टी के हौसले और बुलंद हुए। मुख्यमंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल अर्जुन की तरह पंजाब पर टक टकी लगाए हुए थे और दिल्ली में किये गए प्रशंसनीय काम से उनकी लोकप्रियता भी बढ़ी। पंजाब में एक तरफ राजनीतिक बादल परिवार की जड़ें बरसों से गाढ़ी हुई है वही दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी अपनी पहचान बना रही है। सवाल यह है कि अरविन्द केजरीवाल का दो राज्यों में ही चुनाव लड़ने का चुनाव क्यों किया ? पंजाब राज्य जिसकी अधिकतम आबादी विदेशो में रहती है और यह राज्य नशीली ड्रग और भ्रस्टाचार से जूझ रहा है जो लोग पंजाब से बाहर गए है वो लोग पंजाब को फिर से खुशहाल देखना चाहते है यही कारण है की २०१४ के चुनावो में NRIs का अहम् योगदान रहा कालिंग कैंपेन और छोटा छोटा डोनेशन देकर एक एक उम्मीदवार को सशक्त किया। फ़ोन के जरिये अपने रिश्तेदार, पडोसी और गाँव वालो को समझाया। आम आदमी पार्टी का गोवा चुनाव का समीकरण भी कुछ इसी तरह है राज्य का क्षेत्रफल कम होना कम समय में ज्यादा पहुँच। गोवा के लोग भी सुलझे हुए है जाति धर्म की लड़ाई नहीं है जिस स्तर से राज्य का विकास होना चाहिए था उस तरह का विकास नहीं है बेरोजगारी नशा शिक्षा और स्वास्थ की गंभीर समस्या है इन्ही कारणों से पार्टी इस बार चुनाव में उतरी है। 

2017 के विधान सभा चुनाव बहुत ही रोमांचक होने वाले है क्योंकि जहाँ कांग्रेस कैप्टन अरमिंदर के भरोसे मैदान में उतरी है वही अकाली दल एक सर्व साधनों से भरपूर दमदार पार्टी है अब देखना यह है की आम आदमी पार्टी के पास ऐसी कौन सी पारसमणी जिसके दम पर इन बाहुबलियों से मुकाबला करेगी। जी हाँ ! आम आदमी के पास एक ऐसा खजाना जिसे दुनिया की कोई भी ताकत पैसे से नहीं खरीद सकती वो है "जूनूनी कार्यकर्ता" आज पूरी दुनियाँ भर में लाखों जुनूनी कार्यकर्त्ता पिछले एक साल से पंजाब और गोवा चुनाव के लिए दिन रात काम कर रहे है हज़ारों कार्यकर्त्ता अपना परिवार नौकरी छोड़ कर जमीनी मुहीम का हिस्सा है जिसमें आधुनिक टेक्नोलॉजी के जरिये लाखों परिवारों को जोड़े हुए है। 

रघु महाजन, कैलिफ़ोर्निया की स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे थे साथ ही साथ आम आदमी पार्टी का काम भी करते है पिछले पांच महीनो से सब कुछ छोड़ कर पंजाब में डेरा डाले हुए है और जमीनी स्तर का काम देख रहे है। वही गोवा के लिए भी विशाल कुडचडकर बर्कले (UC Berkalay) यूनिवर्सिटी से MBA करने के बाद लॉस एंगेल्स की मल्टीनेशनल कंपनी में मेनेजर है पिछले साल अधिकतम समय गोवा में चुनावी ढाँचा तैयार करने में मदद की और पूरे अमेरिका के गोवा निवासीयों को इस मुहीम से जोड़ा। सिएटल के वरुण गुप्ता माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी करते है और जब भी छुट्टी मिलती है काम करने दिल्ली पहुँच जाते है अभी फ़िलहाल पंजाब में कई महीनों से गाँव गाँव में घूम रहे है। श्रीकांत कोचर्लाकोट लॉस एंगेल्स में रहकर ही कॉलिंग कैंपेन को सम्हाल रहे है कालिंग कैंपेन को आम आदमी पार्टी का एक बहुत मजबूत हथियार माना जाता है जिसकी शुरुआत श्री भाई ने पहले दिल्ली चुनाव के समय की थी आज की तारीख में लाखों लोग इस मुहीम से जुड़े हुए है प्रभात शर्मा जो कि अमेरिका वेस्ट कोस्ट के इंचार्ज है और कालिंग कैंपेन में जुड़े हुए है अमेरिका ही नहीं बल्कि सभी बड़े देशों के निवासी इस मुहीम में शामिल है लन्दन के ग्लासगो शहर के इंदरपाल शेरगिल अन्ना जी के समय से जुड़े हुए है तन मन धन के अलावा खुद भी पंजाब और गोवा में जाकर काम किया और अपने पंजाब निवास, फार्महाउस  और गोवा निवास के द्वार को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए खोल दिया। हेमंत मिश्रा नेथेरलैंड्स हॉलैंड टीम से भारतीय युवाओं को जोड़ा और खुद भी २०१४ लोक सभा चुनाव में अपनी नौकरी छोड़ कर गए आज भी पंजाब और गोवा के लिए काम कर रहे है। अन्य देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया दुबई कनाडा जर्मनी फिलीपीन और सऊदी अरेबिया के वालंटियर जुड़े हुए है। इन चुनावों में यदि हम महिला कार्यकर्त्ता की बात करें तो वो भी अपने नौकरी घर और बच्चों को छोड़ काफी समय पार्टी को दे रही है लॉस वेगास से गुरिंदर कौर ने अब तक ग्यारह हज़ार फ़ोन कर चुकी है वही परमिंदर अटवाल लॉस एंगेल्स टीम को सम्हाल रही है कविश मल्होत्रा सोशल मीडिया इन बागडोर सम्हाले हुए है।पंजाब का दोआबा एनआरआई का गढ़ है और उनका 34 सीटों पर खासा प्रभाव है। जहां 25 फीसदी के आसपास फंडिंग एनआरआई द्वारा की जा रही है, एनआरआई अपने मनचाहे उम्मीदवारों को जिताने के लिए यूरोप से लेकर गांव तक पूरी ताकत से जुटे हुए है  हाल में ही कैंपेन "चलो पंजाब" के तहत दो फ्लाइट भर कर  कनाडा और इंग्लैंड की टीम पंजाब को सपोर्ट करने पहुंची जिनका स्वागत खुद मनीष सिसोदिया ने दिल्ली एयरपोर्ट पर बैंड बाजा के साथ धूम धाम से किया अगले हफ्ते भी ये सिलसिला चलता रहेगा। दुनिया भर में करीब ३५ लाख पंजाबी एनआरआई हैं आम चुनाव में इससे पहले फंडिंग और समर्थन जुटाने के लिए नेता भारत  से कनाडा, अमेरिका और ब्रिटैन जाते रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि विदेशों में बसे पंजाबी इतनी बड़ी तादात में खुद यहाँ आकर किसी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे है वाकई कुछ तो अलग है इस चुनाव में। अब देखना यह है की एक तरफ बड़ी बड़ी पार्टियों की तरफ से पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है दूसरी तरफ आम आदमी के कार्यकर्ता खुद का पैसा खर्च करके घर घर दरवाज़ा खट-खटा रहे है एक तरफ पैसा, हथियार, हवाई जहाज है दूसरी तरफ इन कार्यताओं का देश के प्रति जूनून है। नतीजा ११ मार्च को पता चलेगा। इंक़लाब ज़िंदाबाद। 

Thursday, December 29, 2016



Yes, Swaraj is Possible!



By Roopsi Narula

California based, Indian American, Maya Vishwakarma recently won the Best Creative Producer Award, 2016 for her documentary Swaraj Mumkin Hai, in the Festival of Globe Film Festival in San Francisco. What is it about this documentary that instantly strikes a chord with the viewers’ hearts?

Well, this must watch documentary is a story of Baghuvar, a tiny village in Madhya Pradesh, India. What is it about Baghuvar, which made it so compelling for Maya to bring forth this story for the world to watch and admire?

The documentary is a reaffirmation for any romantic, who ideally always believed in the notion of self-sufficiency of an empowered Indian village but had somewhere lost hope that such a self-sustained community can exist beyond the world of intellectual discourse.

The first look of Baghuvar in the documentary is that of beautiful green surroundings, which instantly has a soothing effect on the eyes. The viewer experiences the joy and nostalgia of seeing an Indian village. As the documentary progresses, one watches with awe the remarkable progress made by this village in raising the standard of living for its inhabitants, entirely by the efforts of the village community. The villagers have turned every difficulty into an opportunity to create a model village of Baghuvar.

The documentary shows with great details how the villagers have achieved Swaraj or self-rule. The village boasts of clean drinking water, a toilet in every house, well-functioning underground drainage system, rain water harvesting, eco-friendly waste management, infrastructure development and provision of education for the villagers. What is more refreshing is to know that in spite of all the good work being done by this village community, the villagers do not boast about their success or seek any media attention. For them, this is their way of life; of treasuring their village, viewing it as their prized possession, of preserving its rich heritage with a sense of community ownership and participative decision making.




The problems of the village are solved in community meetings, which are open to participation by all. Decisions are taken collectively. The village has a history of having never conducted elections and of choosing the members of Gram Panchayat unanimously! This cuts down the expense of polling and in turn, the village gets rewarded by the Government of India. The villagers volunteer to keep the village clean and to do minor repair work, which may be required from time to time. PDS shops in Baghuvar have ample stock, which is handed out fairly to those who have the ration cards. There have been no instances of adulteration in food items. Socially, Baghuvar has such progressive ideals that untouchability is considered a sin and even inter-caste marriages are solemnized with the collective blessings of the village community!




By the time you finish watching this documentary, a viewer gets to experience the joy and satisfaction of knowing that the dream of Swaraj is actually a reality somewhere in a distant village of India. The documentary satiates the idealism of a Swaraj-enthusiast and reaffirms their faith in the tremendous potential of self-sustained and self-empowered communities. Yes, Swaraj is indeed possible!

Roopsi is a Swaraj-enthusiast and a digital marketing professional based in New Jersey. She can be reached at roopcnarula@gmail.com


Monday, November 14, 2016

माननीय श्री नरेंद्र मोदी को एक आम नागरिक का खुला पत्र

अबकी बार लंबी लंबी कतार और गरीब लाचार !


आदरणीय मोदी जी

कल आपका गोवा का भाषण सुना बहुत अच्छा लगा सुनकर आप जापान से लौटते ही काम में लग गए सभागार तालियों की गड़गडाहट से लगातार गूँज रहा था उपस्थित गणमान्य ने कई बार आपको उत्साहपूर्ण स्वागत भी किया सभागार देखकर ऐसा लग रहा था शायद ही इनमें से कोई एटीएम की कतार में लगा हो चारों तरफ वाही-वाही हो रही थी सभी आपके फैसले का समर्थन कर रहे थे काफी भावुक कर देने वाला भाषण था  

शायद आपने जापान जाते वक़्त नहीं सोचा होगा की मेरे जाते ही ये देश ये स्थिति बनेगी तारीख रात ठीक बजे का वो निर्णय पूरे देश हो हिला कर रख देगा और सड़कों पर हाहाकार मचेगा १००० और ५०० के नोट विमुद्रीकरण कालाधन और भ्रस्टाचार को रोकने के लिए आपका निर्णय बहुत सराहनीय है हम आपके साथ है इससे देश का कालाधन वापस आएगा और भ्रस्टाचार पर लगाम लगेगी लेकिन पिछले चार दिनों से जो दिखाई और सुनाई दे रहा है बहुत ही दुखद है ५०० और १०००  के नोट का आपका निर्णय अच्छा हो मगर इसका क्रियान्वयन (execution) ठीक से नहीं किया गया बिना तैयारी के ही आपने अपना निर्णय मैदान में रातों रात उतार दिया मशीनों को चेक नहीं किया गया इतना लोड लेने के बाद चलेंगी या नहीं नए नोट काम करेंगे या नहीं उतने एटीएम देश में है या नहीं आपने नोकरशाहों और अर्थशास्त्र विद्वानों की सलाह से नीति तो बनाई मगर जमीनी हक्कीकत नहीं देखी कि आम गरीब जनता जो शहर से दूर दराज गाँव में है उन पर इसका क्या असर होगा 
प्रधानमंत्री जी, ये समय किसानों के लिए बहुत अहम होता है पूरे साल की बोनी बखरनी इसी समय होती है किसान को खाद बीज डीजल के लिए पैसे की अति आवश्यकता होती है ऐसे में बैंक की लाइन में लगकर अपना कीमती समय बरबाद हो रहा है किसानों के पास पैसे नहीं है ना खाने को और ना ही बीज खरीदने को ऊपर से ये शादियों का मौसम है, हज़ार पाँच सौ के नोट लेकर घूम रहे है १० कि मी दूर से कस्बे तक आना लाइन में खड़े होकर दिन भर भूखे प्यासे इंतज़ार करना पता चला जब तक नंबर आया तब तक एटीएम से पैसे ख़तम हो गए या मशीन बंद हो गयी खाली हाँथ लेकर वापस लौट जाते है इनकी व्यथा को सुनिए और समझिये अगर इस देश का किसान अभी अपनी फसल नहीं लगाएगा तो देश को पूरे साल खाना कहाँ से आएगा ? इन गरीबों के पास ना तो क्रेडिट कार्ड है ना ही पे टीम (PayTM) की सुविधा ना ही बैंको के बारे में उतनी विस्तृत जानकारी आपकी नीति इन गरीब लाचार किसानों को ध्यान में रख कर नहीं बनायीं गयी अन्यथा ये हाल नहीं हो रहा होता 
अगर शहर की बात करें तो वहाँ भी बुरा हाल है रोज़ मरा की चीज़ों तो ठेले वाले या बनिए की दूकान से आती है आज ठेले वाला अपनी सब्ज़ी नहीं बेच पा रहा है क्योंकि छुट्टा नहीं है दर्ज़ी की दूकान बंद है क्योंकि लोग सामान उठाने नहीं रहे है घर जो बाई आती है उसे भी पैसे चाहिए उसके बच्चों की स्कूल फीस और ट्यूशन फीस देनी है दिन भर नोट बदलने के चक्कर में दहाड़ी मज़दूरी कट रही है दूध वाला भी दरवाज़े में खड़ा है इनको पैसे कहाँ से दें ?

चलिए ये लोग तो दो चार दिन रुक भी जायेंगे मगर उनका क्या जिनके घरवाले रिश्तेदार अस्पताल में है इलाज के लिए पैसे नहीं है अस्पताल वाले १००० और ५०० का नोट नहीं ले रहे मेडिकल स्टोर में दवाई नहीं दे रहे है 
पिछले चार दिनों में मैंने कितने ऐसे रियल लाइफ के वीडियो देखे जिसमें की दवाई और इलाज ना मिल पाने की वजह से लोगों ने अपनों को खो दिया किसी ने अपना बच्चा खोया किसी ने अपनी माँ तो किसी ने अपना मित्र रिश्तेदार कल आपने अपने भाषण में कहा कि ''मैंने घर, परिवार, सबकुछ देश के लिए छोड़ा है मैं कुर्सी के लिए पैदा नहीं हुआ लेकिन छोड़ने का क्या मतलब जब आम जनता ही त्राहि त्राहि कर रही हो कम से कम इन लोगों का प्रबंधन अच्छी तरीके से होना चाहिए था 

आपने कहा 50 दिन में पूरी सफाई करने को कहा है मगर 50 दिन में कितने परिवार बिखर जायेंगे इसका अंदाज़ा आपने नहीं लगाया होगा दिन में एक भी अरबपति करोड़पति लाइन में आकर खड़ा नहीं हुआ जिनके पास काला धन होगा सबने अपने अपने तरीके ढूढ़ लिए है काला धन को ठिकाने लगाने के लिए किसी ने सोना खरीदा तो किसी ने डॉलर खरीद लिया परेशान तो आम जनता है और बैंक वाले है जिनको ओवर टाइम छुट्टी के दिन भी काम करना पड़ रहा है 
अभी जो देखने को मिल रहा है उसमें तो काला बाज़ारी ज्यादा चल रही है २००० के नए नोट आते ही नकली नोट आने शुरू हो गए कहीं मशीनों में नोट फिट नहीं हो रहे है तो कही और समस्याएं है इसको रोकने के लिए क्या कदम उठाये जायेंगे ?

प्रधानमंत्री जी, जब आपकी सुरक्षा में जल थल और वायु सेना है तो किस चीज़ से डरना कल आपने अपने भाषण कहां कि  "मैं जानता हूं कि किससे लड़ाई मोल ली, वो मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे...भाइय़ों मैं जानता हूं कि मैंने कैसेी कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ली है मैं जानता हूं कैसे-कैसे लोग खिलाफ होंगे, मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे, मुझे बर्बाद कर देंगे लोग कैसी-कैसी बातें मेरे बारे में कह रहे हैं, नोट बंदी पर क्या कुछ नहीं कह रहे लेकिन, मुझे जिंदा भी जला दो मोदी को डरने वाला नहीं" इस तरह की बातें करके आप क्या समझाना चाहते है आप देश के सबसे शक्तिशाली  गौरान्वित पद पर है इस गरिमा को देखते हुए कौन आपको नुकसान पहुँचा सकता है 

नुकसान तो उन लोगों का हो रहा है जो पिछले चार दिन से लाइन मैं लगे है एक विद्यार्थी अपनी क्लास छोड़ कर एक कर्मचारी अपनी नौकरी छोड़ कर........प्रधानमंत्री जी भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए देश का हर नागरिक आपके साथ है मगर पहले सिस्टम को दुरुस्त बनाइये और आम जनता की परेशानी समझिये तभी ये देश आगे बढ़ेगा नहीं तो...... यही स्थिति रही तो आर्थिक गति रुक जाएगी 






दिनाँक 14 नवम्बर, 2016                                                                            प्रार्थी    
                                                                                                                     आम नागरिक
                                                                                                        (माया विश्वकर्मा)